आदरणीय मित्रों

हरदोई जनपद को भक्त प्रहलाद की नगरी कहा जाता है। भक्त प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं नारायण को नरसिंह का अवतार लेकर धरती पर आना पडा था और आग के दहकते स्तम्भ से प्रगट होकर उन्होंने हिरण्याकश्यप् का वध किया था। इसे सुविचारित निर्णय भी कहा जा सकता है और मात्र संयोग भी कि 1949 में भारत देश मे गणतत्र लागू होने पर इस जनपद का पहला जिलाधिकारी जिस व्यक्ति को बनाया गया उसका नाम था श्री नरसिंह नारायण। श्री नारायण के बाद 1951 से 1952 तक इस जनपद के जिलाधिकारी श्री भगवन्त सिंह नामक आइ सी एस अधिकारी हुये। श्री भगवन्त सिंह के पुत्र डाॅ अजित कुमार सिंह देश के प्रमुख अर्थशास्त्री हैं और पूर्व में उत्तर प्रदेश में शोध कार्य कराने वाली प्रतिष्ठित संस्था गिरि इन्टीट्यूट आफ डेवलपमेंन्ट स्टडीज के निदेशक रहे है।

डाॅ सिंह बीते दिवस ऐक सांस्कृतिक संस्था की विचार गोष्ठी में भाग लेने के लिये इस जनपद में उपलब्ध थे।
उन्होंने अपने व्याख्यान में जहां देश के आर्थिक विकास की चुनौतियों से निबटने के लिये कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां बनाने की आवश्यकता बतायी वहीं जिलाधिकारी के रूप में अपने पिता की तैनाती काल को भी याद किया। उन्होंने याद दिलाया कि जब उनके पिता इस जनपद के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत थे तो उसी समय संत विनोबा जी का हरदोई भ्रमण हुआ था तथा इसी दौरान उनका भूदान आन्दोलन आकार ले रहा था।

डाॅ सिंह की यादो में संत विनोवा के भूदान आन्दोलन का जीवित होना एक सुखद अनुभूति अवश्य है क्योंकि संत विनोवा के सहयोगी रहे श्री राहुल बजाज से पिछले वर्ष हुयी मुलाकात मे उन्होने भी स्वलिखित पुस्तक में संत बिनोवा की यात्राओं से जुडे चित्रों को दिखाते हुये नीम के एक पेड के सामने खिंचे संत विनोवा के चित्र को दिखाते हुये बताया था कि यह चित्र बिनोवा जी की हरदोई यात्रा के अवसर पर लिया गया था।
डाॅ सिंह अपना वक्तव्य समाप्त करके वापिस चले गये परन्तु इस जनपद के सांस्कृतिक हलको के लिये यह ज्वलंत प्रश्न अवश्य छोड गये हैं कि जनपद में उस महान संत की यात्रा से जुडे किसी चित्र या स्मारक स्थल का न होना क्या चिंता का विषय नहीं होना चाहिये?

हरदोई जनपद को भक्त प्रहलाद की नगरी कहा जाता है। भक्त प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं नारायण को नरसिंह का अवतार लेकर धरती पर आना पडा था और आग के दहकते स्तम्भ से प्रगट होकर उन्होंने हिरण्याकश्यप् का वध किया था। इसे सुविचारित निर्णय भी कहा जा सकता है और मात्र संयोग भी कि 1949 में भारत देश मे गणतत्र लागू होने पर इस जनपद का पहला जिलाधिकारी जिस व्यक्ति को बनाया गया उसका नाम था श्री नरसिंह नारायण। श्री नारायण के बाद 1951 से 1952 तक इस जनपद के जिलाधिकारी श्री भगवन्त सिंह नामक आइ सी एस अधिकारी हुये। श्री भगवन्त सिंह के पुत्र डाॅ अजित कुमार सिंह देश के प्रमुख अर्थशास्त्री हैं और पूर्व में उत्तर प्रदेश में शोध कार्य कराने वाली प्रतिष्ठित संस्था गिरि इन्टीट्यूट आफ डेवलपमेंन्ट स्टडीज के निदेशक रहे है।

डाॅ सिंह बीते दिवस ऐक सांस्कृतिक संस्था की विचार गोष्ठी में भाग लेने के लिये इस जनपद में उपलब्ध थे।
उन्होंने अपने व्याख्यान में जहां देश के आर्थिक विकास की चुनौतियों से निबटने के लिये कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां बनाने की आवश्यकता बतायी वहीं जिलाधिकारी के रूप में अपने पिता की तैनाती काल को भी याद किया। उन्होंने याद दिलाया कि जब उनके पिता इस जनपद के जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत थे तो उसी समय संत विनोबा जी का हरदोई भ्रमण हुआ था तथा इसी दौरान उनका भूदान आन्दोलन आकार ले रहा था।

डाॅ सिंह की यादो में संत विनोवा के भूदान आन्दोलन का जीवित होना एक सुखद अनुभूति अवश्य है क्योंकि संत विनोवा के सहयोगी रहे श्री राहुल बजाज से पिछले वर्ष हुयी मुलाकात मे उन्होने भी स्वलिखित पुस्तक में संत बिनोवा की यात्राओं से जुडे चित्रों को दिखाते हुये नीम के एक पेड के सामने खिंचे संत विनोवा के चित्र को दिखाते हुये बताया था कि यह चित्र बिनोवा जी की हरदोई यात्रा के अवसर पर लिया गया था।
डाॅ सिंह अपना वक्तव्य समाप्त करके वापिस चले गये परन्तु इस जनपद के सांस्कृतिक हलको के लिये यह ज्वलंत प्रश्न अवश्य छोड गये हैं कि जनपद में उस महान संत की यात्रा से जुडे किसी चित्र या स्मारक स्थल का न होना क्या चिंता का विषय नहीं होना चाहिये?
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