Tuesday 2 June 2015

आत्म-हत्या की ओर अग्रसर हरदोई के लोग

आत्म-हत्या की ओर अग्रसर हरदोई के लोग

     आजकल हरदोई में सबमर्सिबल का जोर है आप मोटर की दूकान पर जायें और पानी की समस्या के बारे में बात करें तो वो तुरंत आपको इसकी ही सलाह देगा क्योकि इसमें उसका लाभ है, स्थिति यह है बोरिंग करने वाले मिस्त्री मिल नहीं रहे हैं और एक बोरिंग पर 40 से 50 हजार का व्यय आ रहा है| पानी की आवश्यकता है तो ये भी आवश्यक है पर गरीब क्या करेगा जबकि ये समस्या अमीरों की पैदा की हुई है और इसके बाद कोई ये नहीं सोच रहा है कि सबमर्सिबल की नौबत क्यों आई और ये भी कहाँ तक चलने वाली है| जब साधारण हैण्ड पम्प थे कोई समस्या नहीं आई पर जबसे INDIA MARK-2 तथा साधारण मोटर का का प्रचलन हुआ पानी की बर्बादी होना प्रारम्भ हो गया और यह स्थिति आ गयी है, अब जब लोग सबमर्सिबल लगवा लेते हैं तो प्रेशर से वाहनों की धुलाई, फर्श की धुलाई और सुबह साढ़े नौ-दस बजे घर और दुकान के बाहर प्रेशर से ही कूड़े की सफाई और पानी का छिड़काव, इस बात से कोई मतलब नहीं कि कितना पानी बरबाद हो रहा है और धूप में तुरंत सूख जायेगा| व्यापारियों के नौकर भी नवाब हो रहे हैं दूकान के बाहर झाड़ू लगाने से बेइज्जती हो जाएगी इसलिए पाइप से ही कूड़े की सफाई होती है| सुबह के 10 बजे जब धूप तेज हो जाती है घर या दुआं के बाहर दरों पानी डालने का क्या अर्थ हो सकता है वो तो 10 मिनट से अधिक रुक ही नहीं सकता| आवास विकास जहाँ दिन में दो बार पानी की आपूर्ति टंकी के माध्यम से होती है और घर में बोरिंग की आवश्यकता नहीं है वहां भी एक दूसरे को देख कर लोग सबमर्सिबल लगवा रहे हैं और अन्धाधुंध बेरहमी से पानी बरबाद कर रहे हैं| 
वास्तव में जल एक संसाधन है और ये किसी के बाप की बपौती नहीं है कि जितना चाहो बरबाद करो, जमीन का एक टुकड़ा किसी की संपत्ति होने मात्र से उसके नीचे के संसाधनों पर केवल उपयोग भर का अधिकार है न कि बरबाद करने का| पर इस सम्बन्ध में कोई कानून भी नहीं है और क्यों हो जैसी प्रजा वैसा राजा, जब सत्ता में बैठे लोगों के परिवार वालों का मिनरल वाटर की कम्पनियों में हिस्सा हो तो वो सरकार क्यों नियम-कानून बनाने लगी| हम बिना घी या दूध का सेवन किये जीवन बिता सकते हैं पर पानी के बिना एक भी दिन नहीं पर प्रकृति ने हमें यह उपहार निःशुल्क प्रदान किया है इसलिए हम इसका मूल्य नहीं समझ रहे है| किसी ने कहा था कि प्रकृति अपने साथ किये गए मजाक का बदला भयानक ढंग से लेती है, हमें यह याद रखने की आवश्यकता है|

Sunday 8 March 2015

नगरी हिरण्याकश्यप की...

नगरी हिरण्याकश्यप की...

जो शहर हिरण्याकश्यप की नगरी के रूप में जगत प्रसिद्ध है, उसका नाम है ’हरदोई’ यानी ‘हरि-द्रोही’। किंवदंती है, कि यहाँ का शासक हिरण्याकश्यप ईश्वर की भक्ति से इतना बैर रखता था, कि उसके राज्य में भगवान राम का लेना पाप समझा जाता था। इतना ही नहीं, वह तो राम का नाम लेने वालों को सरेआम मौत के घाट तक उतार देता था। यह खौफ समाज में इतने गहरे विद्यमान था, कि इस क्षेत्र की स्थानीय कन्नौजी मिश्रित बोली में ‘र’ शब्द का उच्चारण तक करने में संकोच करते थे। इस दहशत का असर यह हुआ, कि इस क्षेत्र ने स्वयं प्रचलित शब्दों का एक नया कोश ही गढ लिया और यहाँ ‘हल्दी-मिर्चा’ जैसे सामान्य शब्दों को भी ‘र’ के प्रभाव से मुक्त करते हुये ‘हद्दी-मिच्चा’ कहना आरंभ किया था जो आज तक अपने उसी स्वरूप में विद्यमान है। ‘र’ के प्रभाव से मुक्त शब्दों के कुछ और भी उदाहरण हैं स्वयं ‘हरदोई’ को स्थानीय भाषा में ‘हद्दोई’ कहा जाता है।

होली का जो त्यौहार समूचे भारत में उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है, उसका मूलाधार भी इसी क्षेत्र में निहित है। कहा जाता है, कि ईश्वर की भक्ति से बैर रखने वाले हिरण्याकश्यप के घर पर ईशभक्ति के लिये जग प्रसिद्ध भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ। हिरण्याकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद के मन से ईशभक्ति को समाप्त करने के लिये अनेक उपाय किये, परन्तु जब वह अपने समस्त उपायों में विफल होता गया, तो अंततः उसने अपने ईशभक्त पुत्र की जीवन लीला ही समाप्त करने का क्रूर निर्णय ले लिया।
अपने इस क्रूर निर्णय को सार्वजनिक करने के बाद उसने इसे लागू करने का उत्तरदायित्व अपनी बहन होलिका को दिया। यह तय हुआ, कि समूची प्रजा को एकत्रित कर लिया जाए, ताकि उसके राज्य में ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाले व्यक्ति का हश्र समूची प्रजा देख सके और उससे सबक भी ग्रहण कर सके। यह निर्णय हुआ, कि प्रहलाद को जलती हुयी चिता में झोंककर मार डाला जाय। लकडियाँ मँगाकर चिता तैयार की गयी और हिरण्याकश्यप की बहिन होलिका को इस महत्वपूर्ण राजकीय निर्णय को लागू करने का दायित्व दिया गया।
होलिका ने एक अग्नि-रोधी आवरण ओढ कर स्वयं को सुरक्षित कर लिया और प्रहलाद को गोद में उठाकर चिता में जलाकर नष्ट करने के लिये चिता में प्रवेश किया। भक्त प्रहलाद ने आँखें बंद कर ईश्वर का ध्यान लगा लिया। उपस्थित जन समुदाय के दहश्त के साथ इस समूचे घटनाक्रम को देखरहा था। कुछ ही देर में धू धू करती चिता में अग्नि-रोधी आवरण ओढकर प्रवेश करने वाली होलिका जलकर भस्म हो गयी और आँखें बंद कर ईश्वर के ध्यान में रत भक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ।

वह दिवस फाल्गुन माह का अंतिम दिवस था। कालान्तर में जब भगवान ने नरसिंह रूप घारण कर हिरण्याकश्यप का वध कर दिया, तो फाल्गुन माह के अंतिम दिन अर्धरात्रि में होलिका के दहन की परंपरा को उत्साह के साथ जोड़ दिया गया और इसे राक्षसी प्रवृति के संहार के रूप मनाये जाने की प्रथा का आरंभ हुआ, जो अब होली के त्यौहार के रूप में समूचे भारत में उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

भक्त प्रहलाद को जिस स्थान पर पर जलाकर मार डालने का यत्न किया गया था, उस स्थान पर कालान्तर में एक कुआँ खुदवाया गया और इस स्थान को मृत्योपरांत संपन्न किये जाने वाले कर्मकाण्डों के लिये आरक्षित कर दिया गया । समय बीतने के साथ इस कुएँ के चारों ओर तालाब खोदा गया और यह स्थान प्रहलाद घाट के नाम से जाना जाने लगा। स्थानीय प्राधिकारी द्वारा इस तालाब का सौंदर्यीकरण भी कराया गया है। यह स्थल वर्तमान में संलग्न चित्र में प्रदर्शित स्थिति में है।

इस स्थल पर अनेक पुराने फलदार वृक्ष भी लगे हैं जो अपनी जरावस्था में पहूँच चुके हैं। इसी स्थान पर एक पुराना पीपल का पेड़ अब भी अपनी अनेक विशेषताओं के साथ खडा है जिसमें प्रमुख विशेषता यह है कि इस पीपल के पेड़ में विभिन्न देवी देवताओ की आकृतियाँ स्वतः प्रसफुटित होती रहती हैं । वर्तमान में ऐसी ही कुछ आकृतियों के चित्र यहाँ संलग्न हैं। अपनी जरावस्था में पहुँच चुके आम के एक वृक्ष में विद्यमान आरपार झाँकती खोह। समीप ही नरसिंह भगवान का मंदिर भी है।

सौजन्य से : डॉ अशोक शुक्ला

फेसबुक पेज   Hardoi Let's Unite For Culture में प्रकाशित

Thursday 19 February 2015

गाँधी भवन हरदोई

गाँधी भवन हरदोई

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गाँधी भवन उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद के मुख्यालय में स्थित है। 
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  • इस परिसर में स्थापित प्रार्थना कक्ष महात्मा जी की विश्राम स्थली रहे कौसानी में स्थापित अनासक्ति आश्रम में स्थापित प्रार्थना कक्ष के समरूप है तथा कौसानी में संचालित नियमित सर्वधर्म प्रार्थना के अनुरूप इस परिसर में भी नियमित रूप से सर्वधर्म प्रार्थना की जाती है।
  • सन् 1928 में साइमन कमीशन के भारत आने के बाद इसका विरोध करने के लिये महात्मा गांधी ने सारे समूचे भारत में यात्रा कर जनजागरण किया।
  • इसी दौरान 11 अक्टूबर 1929 को गांधी जी ने हरदोई का भी भ्रमण किया। सभी वर्गों के व्यक्तियों ने महात्मा गांधी जी का स्वागत किया तथा उन्होंने टाउन हाल में 4000 से अधिक व्यक्तियों की जनसभा को संबोधित किया। सभा के समापन पर खद्दर के कुछ बढ़िया कपड़े 296 रूपये में नीलाम किये गये और यह धनराशि गांधी जी को भेट की गयी।
  • स्वतंत्रता के बाद सम्पूर्ण भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी के भ्रमण स्थलों पर स्मारकों का निर्माण किया गया जिसमें हरदोई में गांधी भवन का निर्माण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महात्मा गांधी जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में सम्पूर्ण भारत वर्ष में जन शताब्दी समितियों का गठन किया गया था, जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जनपद में जन शताब्दी समितियों का गठन किया गया था जनपद हरदोई में भी शताब्दी समिति का गठन किया गया इस समिति की अध्यक्षता तत्कालीन जिलाधिकारी श्री एच एल विरदी ने की। यह तत्कालीन जिलाधिकारी की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने इस जनपदीय शताब्दी समिति में ऐसे महानुभावों को सम्मिलित किया जिन्होंने इस शताब्दी समिति को आने वाले समय में और अधिक गौरवमयी बनाया।
  • इस समिति ने यह निर्णय लिया कि 1929 में जिस स्थान पर प्रथम बार गांधी जी आये थे उसी स्थान पर गांधी भवन का निर्माण कराया जाये।
  • 1877 में जब महारानी विक्टोरिया भारत की सम्राज्ञी घोषित हुयी थीं तो इस एतिहासिक घटना की स्मृति में भारतवर्ष में दो स्थानों पर विक्टोरिया मेमोरियल भवनों का निर्माण हुआ था एक कलकत्ता में और दूसरे हरदोई में । हरदोई में निर्मित इसी विक्टोरिया भवन परिसर जिसे टाउन हाल कहा जाता था में रिक्त पडे विशाल भूभाग पर एक विशाल जनसभा को संबोधित किया गया जिसमें लगभग 4000 व्यक्ति सम्मिलित हुये थे।
  • गांधी शताब्दी समिति हरदोई ने विक्टोरिया मैमोरियल हाल से इस रिक्त भूमि को (2000 रू) दो हजार प्रतिवर्ष लीज पर लेकर राइफल क्लब व जन सहयोग से धन एकत्रित कर वर्ष 1970 में इस भवन का शिलान्यास कराया। इस भवन का निर्माण कार्य वर्ष 1972 में पूर्ण हुआ।
  • इस भवन की मरम्मत और अन्य देख रेख हेतु शहर मे सम्पन्न होने वाले मांगलिक, सामाजिक, राजकीय कार्यक्रमों एवं राजनैतिक गोष्ठियों के लिये किराये पर उठाकर धन की व्यवस्था की जाती है। भवन की अन्य श्रोतो से कोई आय नही होती है|
  • इस भवन का रख रखाव महात्मा गांधी जनकल्याण समिति द्वारा किया जाता है।
  • 2013 में इस समिति के सचिव अशोक कुमार शुक्ला ने इस परिसर में एक प्रार्थना कक्ष स्थापित कराकर नववर्षारम्भ के अवसर पर 1 जनवरी से सर्वोदय आश्रम टडियांवा के सहयोग से नियमित सर्वधर्म प्रार्थना का आरंभ कराया है।

कार्यकारिणी


  

  

कार्यकारणी सदस्य

  1. श्री फखरूल इस्लाम ‘ फक्कन ‘ समाजसेवी सदस्य रेडक्रास कार्यकारणी पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष
  2. श्री अशोक उपाध्याय मंत्री मूरज सेवा संस्थान (खादी वस्त्रोधोग )
  3. श्री आलोक श्रीवास्तव एडवोकेट /सचिव रेडक्रास/समाजसेवी
  4. श्री बाबू अली से0नि0 शिनाख्त मजिस्ट्रेट
  5. श्री जगन्दिर सिह गांधी अध्यक्ष रोटरी क्लब /कार्यकारणी सदस्य रेडक्रास , महासचिव गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी
  6. अन्य सदस्यगण (पदेन)
  7. CDO, CMO, ADM तथा 12 अन्य जनपद स्तरीय अधिकारी 

सदस्य

  1. श्री राम भरोसें आर्य स्व0 संग्राम सेनानी हरदोई
  2. श्री धर्मेन्द्र सिंह अध्यक्ष अरिवल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन हरदेाई
  3. सुश्री कुसुम जौहरी सर्वोदय आश्रम सिकन्दर पुर हरदोई
  4. डा0 एस0एस0 द्धिवेदी BSC B.H.M.S. बाल रोग एवं त्वचा रोग विशेषज्ञ (समाज सेवी)
  5. डा0 सौरभ दयाल
  6. श्री राम स्वरूप पत्रकार
  7. श्री सत्यवीर प्रकाश आर्य एडवोकेट
  8. श्री अविनाश चन्द्र गुप्ता एडवोकेट (डी0जी0 सी0)
  9. श्री अरूणेश बाजपेई एडवोकेट
  10. श्री दान बहादुर सिंह से0नि0 एस0डी0एम0
  11. श्री सुरेन्द्र नाथ गुप्ता
  12. प्रबंधक - श्री जे0पी0 श्रीवास्तव से0नि0 वित्त एवं लेखाधिकारी /कोषाध्यक्ष वरदान चैरिटेविल ट्रस्ट हरदोई
     

संपर्क करें:

महात्मा गाँधी जनकल्याण समिति
गाँधी भवन हरदोई, उत्तर प्रदेश
पिनकोड - 241001
वेबसाइट : http://www.gandhibhawan.com

Thursday 12 February 2015

हरदोई का स्वर्णिम इतिहास

हरदोई का स्वर्णिम इतिहास

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की लड़ाई में जिले के माधोगंज के रुइया नरेश नरपति सिंह ने अपनी सेना के साथ अंगेजी फौज का डटकर मुकाबला किया और 55 अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और लगभग इतने ही सैनिकों को घायल कर उन्हें वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। इस लड़ाई में विक्टोरिया के ममेरे भाई ब्रिगेडियर होप को मार गिराया था । जिसकी मौत की खबर लंदन में पहुंचने पर वहां सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था । माधौगंज में स्थित रुइया नरेश श्री नरपति सिंह का जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंचा किला और लड़ाई में मारे गए अग्रेज अफसरों की कब्रे आज भी माधौगंज, के पशु चिकित्सालय के पीछे स्थित आज़ादी के लिए हुई जंग की मूक गवाही दे रही हैं ।

1857 के स्वंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजी फौज ने मल्लावां को हेड क्वाटर बना रखा था। लखनऊ में विद्रोह शुरू होने की खबर मिली तो यहाँ भी अंग्रेजी अफसर सतर्क हो गए। रुइया नरेश का ही डर था कि मल्लावां के डिप्टी कमिशनर डब्लू सी चैपर को जब विद्रोह का समाचार मिला तो उन्होंने अंग्रेजी सेना के सचिव कैप्टन हचिनशन न को माधौगंज की और न जाने की सलाह दी, लेकिन हचिनशन अपनी जिद पर अड़े रहे चैपर की सलाह को वह नहीं माने और आगे बढ़ते रहे, लेकिन नरपति सिंह और बरुआ के गुलाब सिंह ने सेना के साथ अंग्रेजो के इस कदर दांत खट्टे किये की करीब डेढ़ वर्षो तक फिरंगी हुकूमत के हरदोई जिले में पैर नहीं जम सके
नाना साहब पेशवा का एक दूत रोटी का टुकड़ा और कमल का फूल लेकर रुइया गढ़ी स्थित नरपति सिंह के दरबार में पहुंचा। कमल क्रांति का चिन्ह व रोटी का टुकडा सभी जाति -वर्ग में भाईचारे व संगठन का प्रतीक था । रुइया नरेश ने इसे स्वीकार करते हुए नाना साहब को पैगाम भेजा और संकल्प लिया की जब तक जिन्दा रहूँगा तब तक देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करता रहूँगा ।

 नरपति सिंह ने सगे भाई बेनी सिंह को मुख्य सेनापति बनाकर तीन कमान बनाई , जिसका नेतृत्व बस्ती सिंह, लखन सिंह व बद्री ठाकुर कर रहे थे । 29 मार्च, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में सैनिक मंगल पाण्डेय ने विद्रोह कर दिया, तब नरपति सिंह के इशारे पर ही 15 मई 1857 को संडीला में भीषण युद्ध हुआ , जिसे दबाने के लिये अंग्रेजी हुकूमत के तत्कालीन सचिव हचिसन को संडीला भेज गया । वह आगे बढ़ भी रह था, किन्तु मल्लावां के डिप्टी कमिशनर से खबर मिली कि लखनऊ के विद्रोही माधौगंज के रुइया दुर्ग में एकत्र हो रहे हैं , यह सूचना पाकर सचिसन पीछे भागा और नरपति सिंह ने अपने आस-पास के अंग्रेजों को मारना शुरू कर दिया। इस घटना का हरदोई गजेटियर के पृष्ठ संख्या 143 पर उल्लेख है, फ्रीडम स्टेल इन उत्तरप्रदेश के पृष्ठ संख्या 28 पर लिखा है की नरपति सिंह को अपने दो पड़ोसी बहुत खटकते थे,पहला तो जिला हेड क्वाटर मल्लावां का डिप्टी कमिशनर डब्लू सी चैपर और दूसरा गंजमुरादाबाद का नवाब जो अंग्रेजों के लिये जासूसी करता था। 3 जून 1857 रुइया नरेश ने गंजमुरादाबाद पर आक्रमण कर नवाब को पकड़ लिया तथा उसके भतीजे को नवाब बना दिया । इससे जब डिप्टी कमिशनर चैपर अक्रामक हो उठा तो 8 जून 1857 को नरपति सिंह कुछ क्रांतिकारियों को लेकर मल्लावां पर चढ़ाई कर दी । तब चैपर भागकर संडीला चला गया। क्रांतकारियों ने बड़ी संख्या में अंग्रेजों का कत्लेआम किया और देशी सैनिकों को कैद कर लिया तथा तहसील, अदालत व थाना फूंक कर भवन ढहा दिया । बरबस के सोमवंशी मुआफ़िदारो के मुखिया माधोसिंह (जिसे अवध को शासन में मिलाने के बाद अंग्रेजों ने थानेदार नियुक्त किया था)पर आक्रमण कर उसकी बस्ती को जला दिया । माधोसिंह को कैद कर लिया गया । फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तरप्रदेश के पृष्ठ संख्या 115 , 134 व 135 पर इन घटनाओं का उल्लेख मिलता है ।

राजा नरपति सिंह की गतिविधियां व् मारकाट देखकर फिरंगी दहल गए । देश के स्वतंत्रता सेनानी व बागी फौजी सिपाही माधौगंज में जमा होने लगे । फैजाबाद के महान स्वतंत्रता सेनानी मौलवी लियाकत अली वीके जनपद में आ गए, दिल्ली के बादशाह शाह जफ़र को अंग्रेजों ने कैद कर लिया और एक क्रूर अंग्रेज अफसर हडसन ने बादशाह के सामने ही उनके दो बेटों को मौत के घाट उतार दिया । बादशाह का बड़ा शहजादा फिरोजशाह आँख बचाकर भागकर संडीला पहुंचा और राजा नरपति सिंह से मुलाक़ात की। शिवराजपुर के राजा सती प्रसाद सिंह तथा बांगरमोऊ के ज़मीदार जसा सिंह आकर राजा के सहयोगी बने । राजा के इशारे पर फिरोजशाह संडीला के वीर लक्कड़ शाह ने संडीला के आस-पास का क्षेत्र स्वंतत्र कर लिया तथा मौलवी लियाकत अली ने बिलग्राम, सांडी, पाली व् शाहाबाद तक अंग्रेज परस्तों को मार गिराया। इसका वर्णन हरदोई गजेटियर में मिलता है। बेरुआ स्टेट के सरबराकार गुलाब सिंह लखनऊ, रहीमाबाद व संडीला की लड़ाई लड़ते हुए नरपति सिंह के सहयोग में आ मिले ।

सौजन्य से : सुनील कुमार कश्यप
President at EK PAHAL
http://www.ekpahal.com

Sunday 8 February 2015

महाराणा प्रताप राजकीय पी० जी० कॉलेज

महाराणा प्रताप राजकीय पी० जी० कॉलेज

महाराणा प्रताप राजकीय पी० जी० कॉलेज (MPGPDC) मूल रूप से छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से मान्यता प्राप्त है.. इस विद्यालय का उद्देश्य छात्रो को अनुशाषित परिवेश में उच्च शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ इस योग्य बनाना है की वे समाज के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु वचनबद्ध व अग्रसर रहे. यह विद्यालय हरदोई जिले में रेलवे स्टेशन से ३ किलोमीटर की दुरी पर सीतापुर बाईपास रोड पर है..

इस विद्यालय से निम्नांकित पाठ्यक्रमों में शिक्षा प्राप्त की जा सकती है:-
१. विज्ञानं वर्ग में परास्नातक (M. Sc.)
२. वाणिज्य वर्ग में परास्नातक  (M. Com.)
३. विज्ञानं वर्ग में स्नातक (B. Sc.)
४. वाणिज्य वर्ग में स्नातक (B. Com.)
५. शिक्षा में स्नातक उपाधि (B. Ed.)




वेबसाईट :

पता:
सीतापुर बाईपास रोड, 
हरदोई .उत्तर प्रदेश 
पिन  241001.

फ़ोन नंबर       : 05852-234892
मोबाइल नंबर   : +91-9415759390
ईमेल               : info@mpgpgcollegehardoi.in

Tuesday 3 February 2015

हरदोई बाबा मंदिर

हरदोई बाबा मंदिर


हरदोई बाबा मंदिर प्राचीन स्थान है। यह ऐतिहासिक मंदिर प्रहलाद घाट से थोड़ी दूर स्थित है। जिसका निर्माण सन् 1949 के लगभग करवाया गया इसके प्रांगण में एक पीपल का पेड़ है जिसे ' हरदोई बाबा का दरबार ' के नाम से जाना जाता है।
 
हरदोई बाबा मंदिर
यहाँ पर अनेक देवताओ की मूर्तिया स्थापित है मंदिर के सामने स्थित भवन 'कीर्तन भवन' के नाम से जाना जाता है। इसकी दीवारों पर भगवान राम, कृष्ण,राजा हरिशचन्द्र तथा श्रवण कुमार के जीवन से सम्बन्धित चित्र बने है चैत्र मॉस में रामनवमी नवमी,दशमी एकादशी का मेला लगता है।तथा राम लीला होती है। 

मुख्य द्वार श्री हरदोई बाबा मंदिर
हरदोई बाबा का दरबार
प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिनमे सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है। 

ऐसी मान्यता है की किसी भी परेशानी या बाधा होने पर बाबा जी की विभूति लगाने से समस्या का निराकरण हो जाता है।मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु चाँदी के सिक्के तथा घंटा चढाते है।


कीर्तन भवन

Thursday 29 January 2015

हरिद्रोही नगरी

हरिद्रोही नगरी

हिरण्यकशिपु उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुआ था। हिरण्यकश्यपु हरदोई जिले का राजा था। उसके किले के कुछ अवशेष अभी भी है। 

हिरण्यकश्यप के किले के अवशेष
विष्णुपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्यों के आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। 




जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र, मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/8/8b/Narasimha_Disemboweling_Hiranyakashipu%2C_Folio_from_a_Bhagavata_Purana_%28Ancient_Stories_of_the_Lord%29_LACMA_M.82.42.8_%281_of_5%29.jpg

नाम पर मतभेद

हिरण्यकशिपु के नाम के विषय में मतभेद है। कुछ स्थानों पर उसे हिरण्यकश्यप कहा गया है और कुछ स्थानों पर हिरण्यकशिपु। ऐसा माना जाता है कि संभवतः जन्म के समय उसका नाम हिरण्यकश्यप रखा गया किंतु सबको प्रताड़ित करने के कारण (संस्कृत में कषि का अर्थ है हानिकारक, अनिष्टकर, पीड़ाकारक) उसको बाद में हिरण्यकशिपु नाम से जाना गया। नाम पर जो भी मतभेद हों, उसकी मौत बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के जानकीनगर के पास धरहरा में हुआ था. इसका प्रमाण अभी भी यहाँ है और प्रतिवर्ष लाखो लोग यहाँ होलिका दहन में भाग लेते है.